Page 20 - ABHIVYAKTI - VOL 4.1
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आओ धरती के वग क सैर कराऊँ ।
जब कोई करता है बात हमाचल क
याद आने लगती है माँ के आँचल क I
कसी और जगह न जाने क वा हश
और दल क सारी म त छोड़कर आए ह I
लोग मांगते ह आ ज़ त जाने क
और हम खुद ज त छोड़कर आए ह I
पहाड़ का हर कोना, मेरे दल म आकर बैठा है,
हमाचल क मोह बत को म ने कु छ ऐसे समेटा हैI
यह देव क धरती है, मू य पर चलती है,
हो कोई, कृ पा सभी पर करती हैI
नया द दार करने, इसके तरसती है,
यहाँ क माट , खुशबू से सराबोर हैI
बफ से लद पहा डयाँ, मानो खल खलाकर,हंसती है,
यहाँ के लोग ब त भोले ह , यहाँ मानवता रग रग म बसती हैI
पहाड़ से वीर यहाँ,,
इसके जैसा वग कहाँI
देव बसते ह जहां आकर,
यही है मेरा हमाचल, यही है मेरा यारा हमाचल I
BINESH SHARMA
TGT - HINDI
NAND VIDYA NIKETAN
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