Page 21 - ABHIVYAKTI - VOL 4.1
P. 21

वा हश
                                                  वा हश




                      आप मेरी पहचान हो माँ...
                मेरे पास अब आपक  याद  ही शेष ह ...

                      जैसे कल क  ही बात हो...
                         आप बुलाती रही...

                              और व  नह  था मेरे पास...
                         म  ब त बुरी  ँ माँ...
                 मजबूरी इतनी बड़ी भी नह  थी मेरी...


                                        कु छ अधूरे काम...

                                       कु छ  ज़ मेदा रयाँ...
                                  और अप रहाय  प र   तयाँ...
                                कु छ  दन  बाद ही  मलना था हम ...

                         पर व  अपनी ताकत का एहसास करा गया माँ...
                                        मल ना पाने का ...

                                        देख ना पाने का...
                                       दद  ताउ  दे गया...
                                                                   आप मुझसे नाराज़ तो नह  थ  माँ?
                                                                   पर इस तरह से जाता है  या कोई?

                                                                    बना कहे... बना सुने... बना देखे...
                                                           आज खड़ी  ंँ म  आपक   आ  क  बदौलत माँ....

                                                                         आपने स चा ह  मुझे...
                                                                         मेरी  वा हश  को....
                                                                          आसान बनाया ....

                                                                        मेरी हर मु  कल  को....


                           आप हमेशा मु कु राती रही...

                                दद  छुपाती रही...
                            सर  क  खु शयाँ म  अपनी
                               खु शयां ढूँढती रही...

                     सब क  बला लेने क   आएँ करती रही...
                        एक आ खरी  वा हश पूरी करना...

                   आपक  ही गोद म  ब ी बन  फर  लपटू माँ...







                                                                SULBHA JAIN
                                                                PRT - MATHS

                                                         NAND VIDYA NIKETAN




                                                                                                                   17
   16   17   18   19   20   21   22   23   24   25   26