Page 17 - ABHIVYAKTI - VOL 4.1
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कोण बद लए
घर – प रवार , समाज हेतु हो ,नै तकता का ान |
सही मायने म होगा जब , अपना देश महान ||
जैसा िक सव िविदत है वत मान युग म श ा अपना मह व खोती जा रही है| या यूँ कहूँ िक इस अथ धान युग म श ा का
अथ के वल पढ़– लखकर डि याँ अ■ज त करके धनोपाज न करना ही रह गया है |आज माता–िपता , र तेदार व सगे–
संबंधय को अपने ब से इसी कार क बड़ी–बड़ी आकां ाएँ व अपे ाएँ होती ह ■ज ह पूरा करने म ब े का बचपन ही
तरोिहत हो जाता है |ब ा बचपन से लेकर जवानी तक िकताबी ान के पीछे पड़ा रहता है |
प रणाम व प वह नैतक ान से िपछड़ जाता है |जो सं कार और नैतक मू य ब को ाचीन काल म दादी एवं नानी
क कहािनय से िमलते थे ; आज उन सबके लए िकसी के पास समय ही नह है |अतः आज का िव ाथ घर,प रवार व
समाज के त अपने दाय व को भूलता जा रहा है | जब वह बड़ा होता है और उसे अपनी इ छानुसार सफलता या मन
चाहा रोजगार नह िमलता तो वह तनाव त हो जाता है |साथ ही साथ क ु छ अवांछनीय गत िवधय क ओर अ सर हो
जाता है |माता – िपता जब िनयं ण करना चाहते ह तो उनक रोक – टोक उसे फ ू टी आँख नह सुहाती |जब थत हद
से यादा बढ़ने लगती है तो वही ब ा उन बुज़ुग माँ – बाप को िकसी वृ ा म म पहुँचा देता है |अंत म माता – िपता को
पछतावा शेष रह जाता है |
यिद गहनतापूव क िवचार िकया जाए तो इस सबका मूल कारण सामा■जक त पधा है | समाज म वयं को और से े
िदखाने क हसरत तथा सामा■जक त ा के सातव आसमान पर आसीन होने क चाहत मा ही है |आज हम बलवती
आव यकताओं को पूरा करने के लए रात क न द और िदन का आराम हराम कर बैठे ह | वा तव म इनसान सभी
संसाधन के पाने के प ात सुखी रहेगा यह के वल क पना मा है सच तो यह है िक इंसान
क वाइश कभी पूरी नह होती | इ छाएँ कभी न नह होत सोचते - सोचते मनु य एक िदन वयं न हो जाता है |
अतः आज ब को िकताबी ान के साथ–साथ नैतक, सामा■जक व यावहा रक ान क महती आव यकता है | आज
हम अपने ब को एक मशीन न बनाकर एक अ छा मनु य बनाएँ जो भिव य म एक ■ज मेदार नाग रक बनकर अपने
दाय य को भलीभाँत िनभा सक |अतः आज अभभावक को चािहए िक वे अपने ब को एक सं कारशील सं था म
वेश िदलाकर उसके चा रि क िनमा ण म अपना सहयोग द तािक हम अपनी उसी गु क ु ल परंपरा क ओर मुड़कर गु –
श य परंपरा का िनवा ह कर सक |
डॉ.मुनेश कु मार शमा
(उप धानाचाय )
यू एरा लोबल कू ल, मोरबी, गुजरात
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