Page 22 - ABHIVYAKTI - VOL 4.1
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काश ! आज तुम होते






          काश ! आज तुम होते
           जस पुनजा गरण क  प व    यो त म
          तुमने अपने द पक क  ल  जलाई थी ।
           जस स ाई के  पथ पर चलकर,
          तुमने अपनी जान गवाई थी ।


          वो नह  था मह वहीन, नह  गया है  थ
          लाख  लोग उसे समझने म   ए ह  समथ

          तुम अतु यनीय थे, तुम महान थे
          तुम अ धकारी थे, स मान के  ।


          तुम आए एक रोशनी बनकर, उ साह जगाने
          जोश भरे  दय को लेकर , कु छ कर  दखाने
          उस काल म  जब क, बस अंध व ास के  घेरे थे
          उस संसार म  जब क, बस अंधेरे के  ही घेरे थे ।


          चारो ओर झूठ, अ याचार का  भाव था
          तक  , स ाई क  रोशनी का अभाव था
          अंध व ास म  लोग थे पूरी तरह से अंधे

          कोई नह  था जो  ान के   काश को समझे ।
                                                                              वो कु छ लोग  क  कै सी  वचारधारा थी,
                                                                                 जो खुलकर जीने भी नह  देती थी ,
                                                                               मन के   वचार मन ही मन म  उमड़ते थे

                                                                               जो बाहर आए, तो संघष  हो उठते थे ।


                                                                                 पर आज बदल चुका है पूरा संसार ,
                                                                                 बदले ह  लोग  के  मह वहीन  वचार
                                                                         आज है  वागत खुले  दल से नये  वचार  का ।


                                                                         वो संसार  जसक  कभी तुमने क पना क  थी
                                                                   वह   नया जो आज तक बस तु हारे सपन  म  ही थी
                                                                आज क  है क पना, काश ये प रवत न पहले  आ होता ।
                                                                    ये सब तु हारी सुधारक नजर  के  सामने  आ होता ।


                                                                                     काश! आज तुम यहाँ पर होते
                                                                               इस बदलते संसार को आँख  से देखते
                                                                                  देखते   ढ़वाद के  टूटते बंधन  को

                                                                               देखते स ाई का साथ देते जन  को ।

                                        RAMA RANI RAO
                                                                                   काश ! आज तुम होते ! काश ….!
                                            TGT - HINDI

                                    NAND VIDYA NIKETAN



                                                                                                                   18
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